वरिष्ठ गीतकार कमल सक्सेना ने बेटियों पर अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि,,,
" मांग में सिंदूर तेरे हाथ में. कँगन रहे।
जन्म जन्मों. तक तुम्हारे. प्यार का बंधन रहे।
हाथ में आयी तेरे अब दो घरों की आबरु,
भूल जाना पत्थरों को सामने दर्पण रहे। ""
हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष जी ने कहा,,
" है बहुत मुश्किल पुनः आना फसल ईमान की।
हो गयीं है खोखली काफी जड़ें इंसान की।
लोग तो मशगूल हैँ अपने घरों की फ़िक्र में,
तू कहाँ से बात ले बैठा है हिंदुस्तान की।"
संस्था की संरक्षक श्रीमती निर्मला सिंह जी ने जिंदगी पर अपनी कविता पढ़ी,,,
"मौसम सी बदलती दुनियाँ में इंसान के रूप बदलते हैँ।
जीवन का सफ़र तो लम्बा है हम धूप छाँव में चलते हैँ।"
कवियों ने अपनी कविताओं, गीत व ग़ज़लों से गोष्ठी को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। गोष्ठी में आचार्य देवेंद्र देव, हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष,कमल सक्सेना, संस्था की संरक्षक श्रीमती मौसम सी बदलती दुनियाँ में इंसान के रूप बदलते हैँ।
जीवन का सफ़र तो लम्बा है हम धूप छाँव में चलते हैँ।निर्मला सिंह, अध्य्क्ष दीप्ती पांडे,उपाध्यक्ष चित्रा जौहरी, सचिव डा किरण कैंथवाल, अविनाश अग्रवाल, सुधीर मोहन, मीरा मोहन, मोना प्रधान, व मीना अग्रवाल व शैलजा भारद्वाज आदि ने काव्य पाठ किया। देर रात तक कवि गोष्ठी चलती रही अंत में मीरा मोहन ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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