उत्तरकाशी के रवाई घाटी के रतेडी गांव में 1960 से आज तक नहीं मनाया गया मेला।

उत्तरकाशी के रवाई घाटी के रतेडी गांव में 1960 से आज तक नहीं मनाया गया मेला। 


उत्तरकाशी जनपद की रवाई घाटी अपने आप में देव भूमि  की पौराणिक विरासत हमारे थैले मेले को संजोए रखने में अपना एक महत्वपूर्ण योगदान देती है । और यह की संस्कृति रीतिरिवाज बोलीभाषा भेष भूषा को पूरे जगत प्रचारित प्रसारित करने में व संजोए रखने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। 

लेकिन आज आपको रवाई घाटी के एक ऐसे गांव के बारे में बताते है जिसे बसे हुए  कई सादिया बीत चुकी है । लेकिन आज तक इस गांव में कोई मेले थैले नहीं हुए। जब इस संबंध में उस गांव के बुजुग राजेंद्र सिंह कंडारी जी से जब हमारी मुलाकात हुई और हमने उनसे इस बारे में जानने का प्रयास किया तो वह बताते है कि हमारे गांव की बहन बेटियां आज तक तब एकत्रित होती थी जब हमारे गांव में कोई मांगलिक कार्यक्रम या कोई शोक सभा या दुखद घटना घटित होती थी। लेकिन आज बड़े हर्ष के साथ बताने में खुशी होती है कि आज दिनांक 16 फरवरी  को श्री शिकारुनाग महाराज मंदिर समिति की आम बैठक अध्यक्ष जवार सिंह रावत की अध्यक्षता में आहुत की गई । जिसमें समिति के सभी सदस्यगणों की उपस्थिति में यह फैसला लिया गया की ग्राम रतेड़ी को सावन के महीने श्री शिकारुनाग महाराज की डोली दडमाणा गांव से रतेडी गांव जाएगी । और वहां से मैराना महाराज की डोली जाएगी। तथा शेष कार्यक्रम पूर्व की भांति यथावत रहेगा। 
जिस प्रस्ताव के आने के बाद रतेडी गांव के समस्त ग्रामीणों व वहां से विवाहित समस्त बहन बेटियो में एक खुशी की लहर दिख रही है कि आने वाले समय में समस्त ग्रामवासी व उनके सभी सगे संबंधी इस मेले के माध्यम से एक हो पाएंगे और अपनी व अपनों की खुशी को एक साथ साझा कर सकेंगे।