संघ की स्वर्णिम यात्रा मे संघ का भारत के प्रति दृष्टिकोण।

संघ की स्वर्णिम यात्रा मे संघ का भारत के प्रति दृष्टिकोण। 

रिपोर्ट काजल कुमारी 


शिमला 


हॉल ही मे संपन हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में जिन विषयो पर चर्चा हुई, यह विषय समाज में काम करने वाला वाही निस्वार्थ संगठन और उसके कार्यकर्त्ता कर सकते है जिनके धय सिर्फ राष्ट्र निर्माण हो । प्रतिनिधि सभा में संघ ने समरस- संगठित भारत के निर्माण की और जहाँ कदम बढाया, वहीँ भारत को संगठित करने और जात पात की बाधाओं को दूर करने के लिए भी वचनबद्ध हुआ, और यह काम समाज के हर नागरिक करेगा इस दृढ निश्चय के साथ आगामी योजना पर काम करेंगे। 
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में निर्णय लिया गया कि स्वर्णिम यात्रा १०० वर्ष की यात्रा पूरी करने के बाद यह उत्सव नहीं का शान है बल्कि यह आत्मावलोकन और देशहित मे समाज को संगठित कर बेहतर भारत का निर्माण करने का अवसर है। 
संघ की आगामी योजना मे ऐसे राष्ट्र की निर्माण का प्रण लिया है जो पर्यावरण आधारित जीवन शैली, बेहतर पारिवारिक मूल्यों के सहारे भौतिक समृधि के साथ आध्यातिम्कता के परिपूर्ण राष्ट्र जीवन खड़ा करे। 


वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कौन परिचित नहीं ? एक शताब्दी से भारत के अतिरिक्त विश्व के 80 से अधिक देशों में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कार और सनातन के उन्नयन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से कार्यरत है। डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार जी द्वारा विजयादशमी 1925 को स्थापित लगातार विस्तार, देश- दुनिया में बढ़ती स्वीकार्यता, विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन होने का अर्थ है राष्ट्र के जन गण मन में संघ के प्रति विशेष स्थान होना। किसी भी संगठन को यह स्थान तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका उस राष्ट्र के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान हो। संघ के अनुसार, ‘राष्ट्र मात्र भूमि का एक टुकड़ा नहीं, हमारी अस्मिता है। हमारी पहचान है। हमारा स्वाभिमान है, इसलिए राष्ट्र प्रथम।’ अक्सर कहा जाता है कि संघ व्यक्ति निर्माण करता है। अपनी क्षमता और रूचि के अनुसार राष्ट्र निर्माण के कार्य में स्वयं को समर्पित करने वाले संघ के स्वयंसेवक अनेक प्रकल्पों के माध्यम से इस राष्ट्र के प्रत्येक सन्तान को सामर्थ्यवान् सबल, सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है। सेवा, संस्कार के माध्यम से परिवर्तन की अलख जगाने वालों के लिए समाज जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र छूटा हो जहाँ वे कार्यरत न हों। संघ जीवन का उद्देश्य जनसेवा को प्रभुसेवा मानने का भाव भरता है। समाज जीवन के हर क्षेत्र में संघ वर्षों से काम कर रहा है। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन जिससे जुड़े स्वयंसेवक समाज जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा की छटा बिखेर रहे हैं। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा स्थापित सेवा भारती बिना किसी सरकारी मदद के देशभर में सवा लाख सेवा प्रकल्प चलाती है तो संघ का अनुषांगिक संगठन वनवासी कल्याण आश्रम जंगलों में 70 हजार एकल विद्यालय चला रहा है। विद्या भारती सरस्वती शिशु मंदिर जैसे हजारों विद्यालयों के माध्यम से करोड़ों बच्चों के भविष्य को सँवार रही है। इनके अतिरिक्त धार्मिक क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद, कामगारों को सकारात्मक दिशा देने वाला भारतीय मजदूर संघ सहित स्वदेशी जागरण मंच, शिक्षा के क्षेत्र में अखिल भारतीय राष्ट्रिय शैक्षिक महासंघ , अखिल भारतीय शिक्षक मंडल, भारतीय किसान संघ, विश्व संवाद केंद्र, राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, हिंदू जागरण मंच, विवेकानंद केंद्र, संस्कार भारती, सहकार भारती, संस्कृत भारती जैसे अनेकानेक संगठन सभी को अपना सहोदर मान बिना किसी भेदभाव के सतत सेवा में लगे हैं।
देश के नव निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज भी ऐसे हजारो लोग जीवित हैं जो कृतज्ञतापूर्वक स्वीकारते हैं कि विभाजन के समय पश्चिमी पंजाब में जिस तरह से भारतीय संस्कृति के अनुयायियों के नरसंहार का अभियान चलाया उससे उन्हें बचाने वाला कोई था तो वह संघ ही था। पंजाब के बहुत बड़े हिस्से जिसमें गुरदासपुर और आसपास का क्षेत्र भी शामिल है, को उस पार जाने से बचाने वाले संघ के स्वयंसेवक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। कश्मीर विलय में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी की भूमिका कौन नहीं जानता? कश्मीर के भारत विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संघ प्रचारक श्री जगदीश अबरोलजी ने पश्चिम दिल्ली के उत्तमनगर में अंतिम सांस ली तो उनकी श्रद्धांजलि सभा आर्यसमाज विकासपुरी में हुई। गोवा, दादर, नगर हवेली को पुर्तगालियों से आजाद कराने के लिए श्री जगन्नाथ राव जी जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किया। जगन्नाथ रावजी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने के बाद स्थिति बिगड़ने पर ही सैनिक हस्तक्षेप हुआ और गोवा आज़ाद हुआ।
1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद की। यह भी ऐतिहासिक सत्य है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी ने 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण दिया था। उस समय भी कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें इससे आपत्ति थी, तो नेहरूजी ने कहा था, ‘यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया।’
1965 पाकिस्तान से हुए युद्ध के समय शास्त्री जी क़ानून-व्यवस्था की स्थिति सँभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके। घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था।
संक्षेप में कहे तो संघ नहीं होता तो आज पंजाब,गोवा और काश्मीर भारत के साथ नहीं होते। रामसेतु टूट गया होता। अमरनाथ यात्रा बंद हो गयी होती। हिन्दुओं को अपमानित करने वाले प्रतीकों को बदलने में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका सर्वविदित है। आज भारत की तेजस्विता पूरा विश्व अनुभव कर रहा है तो उसके पीछे संघ के तपशिविरों से निकले समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाले जीवनदानी ही हैं। समरस समर्थ और स्वाभिमानी समाज निर्माण के माध्यम से भारत को सशक्त बनाने का मिशन संघ का ही हो सकता है। संघ से जुड़कर समाज को बदलने का संकल्प लेकर चले लोगों ने विविध क्षेत्रों में ऊँचाइयों को भी बौना साबित किया है। विद्यार्थी,मजदूर,किसान,राजनीति और धर्म के क्षेत्र में संघ विचार से संबंध रखने वाले संगठन अपने अपने क्षेत्र में शीर्ष पर हैं। सेवा के क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से लगभग दो लाख सेवा प्रकल्प देशभर में चल रहे हैं।
जब सारा विश्व कोरोना की चपेट में था,लोग एक-दूसरे के निकट जाने से बच रहे थे लेकिन संघ के स्वयंसेवक अपनी जान जोखिम में डालकर भी सेवा कार्यों में सबसे आगे थे। यह कोई आश्चर्य नहीं कि जीवन भर संघ को कोसने वाले पत्रकार भी मुंबई के खतरनाक घोषित सेवा बस्तियों में संघ के कार्यों की प्रशंसा करते नजर आए। घर लौट रहे प्रवासियों की मदद करने से जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने तक संघ के स्वयंसेवक अग्रणी भूमिका में रहे। वैसे यह पहली बार नहीं है, 1971 में ओडिशा में आया भयंकर चक्रवात हो या भोपाल की गैस त्रासदी, 1984 के सिख विरोधी दंगें हो या गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा सहित जब भी समाज पर किसी भी प्रकार का संकट आया, बाढ़, चक्रवात, सूखा दुर्घटना सहित किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आई, संघ के स्वयंसेवक सबसे आगे दिखाई दिये क्योंकि संघ के लिए अपना देश, अपनी धरती, अपने लोग प्रथम है।


राजनैतिक कारणों से विरोध करने वाले भी अनौपचारिक चर्चा में स्वीकार करते हैं कि हर चुनौती में बिना किसी भेद मदद के लिए बढ़ने वाले हाथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के ही हो सकते हैं। 12 नवम्बर, 1996 हरियाणा में चरखी दादरी से पांच किलोमीटर दूर गांव टिकना कलां और सनसनवाल के समीप सऊदी अरब और कजाकिस्तान के विमान आपस में टकरा गए जिससे दोनों विमानों में सवार 349 लोगों की मृत्यु हो गई। दुर्घटना के शिकार सभी मुस्लिम थे लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं ने स्थानीय लोगों की मदद से जिस तरह से राहत कार्य किये उसके लिए उन देशों के दूतावासों ने भी संघ की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
देश ने 1975 से 77 तक आपातकाल का भयावह दौर भी देखा जब नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। एक व्यक्ति की असंवैधानिक सत्ता को बचाने के लिए जहां पूरा विपक्ष जेलों में ठूँस दिया गया, वहीं पूरे देश को आतंक का पर्याय बना दिया गया। प्रेस सेंसरशिप लागू थी। मीडिया सत्ता की अनुमति के बिना एक शब्द भी नहीं छाप सकता था। ऐसे समय में संघ के हजारों कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाया। पोस्टर चिपकाने से सूचनाएं पहुंचाने तक, जेलों में बंद नेताओं के परिजनों का कुशलक्षेम जानने से उनकी मदद करने तक सभी संवाद सूत्र संभालने वाले संघ के कार्यकर्ता ही थे। 
संघ का कार्यक्षेत्र विस्तृत है परंतु संक्षेप में जानना हो तो पंच-परिवर्तन से समझा जा सकता है। इन आदर्शो का पालन करना प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए अनिवार्य है,-
सामाजिक समरसता- समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द और प्रेम बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित।



कुटुम्ब प्रबोधन – परिवार को राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इकाई के रूप में संवर्धित करना।
पर्यावरण संरक्षण – पृथ्वी को माता मानकर पर्यावरण संरक्षण हेतु जीवनशैली में बदलाव।
स्वदेशी और आत्मनिर्भरता – देश की स्वदेशी अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता पर जोर।
नागरिक कर्तव्य – प्रत्येक नागरिक द्वारा सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन और राष्ट्रहित में योगदान।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव का पक्षधर नहीं है। वह हर उस व्यक्ति को अपना सहोदर मानता है जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है और हर उस व्यक्ति का विरोध करता है जो भारत का अहित चाहता है। देशहित के लिए जीना और अगर जरूरत पड़े तो देश के लिए प्राणों का बलिदान देने को तत्पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण बहुत स्पष्ट है, ‘किन्हीं कारणों से पूजा पद्धति बदलने को विवश लोगों के वंशज अपने पूर्वजों को नहीं बदल सकते। श्रीराम, श्रीकृष्ण हमारी तरह उनके भी पूर्वजों के अराध्य हैं। इसलिए उन्हें जेहादी मानसिकता और कट्टरता का त्याग कर अपने पूर्वजों की मान्यताओं, आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए। इसी रास्ते पर चलकर ही इस पवित्र धरा को आतंकवाद से मुक्त किया जा सकता है।’ 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मात्र एक संस्था नहीं, प्रकृति से समन्वय करने वाला विचार है, जीवन दर्शन है। देश भर में अपनी मातृभूमि को परम वैभवशाली बनाने का संकल्प लिए लाखों स्वयंसेवक नित्यप्रति अपनी शाखा में एकात्मता स्तोत्र दोहराते हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता के उद्बोधक इस गीत में आदिकाल से लेकर अब तक के भारत के महान सपूतों एवं सुपुत्रियों की नामावली है, जिन्होंने भारत की महान सभ्यता के निर्माण में योगदान दिया। इसके अलावा इसमें आदर्श नारियाँ, धार्मिक पुस्तकें, नदियाँ, पर्वत, पवित्र आत्मायें, पौराणिक पुरुष, वैज्ञानिक एवं सामाजिक -धार्मिक पर्वों आदि सबके नामों का उल्लेख है। संघ सर्वे भवन्तु सुखिनः का पक्षधर है। संघ के विश्वव्यापी विस्तार और दुनिया भर में फैले भारतवंशियों के प्रयासों का पुण्यफल है कि आज पूरा विश्व भौतिकवाद की अंधी दौड़ के दुष्प्रभावों से त्रस्त होकर भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। क्योंकि हिन्दू जीवन दर्शन ही सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।